महिला आरक्षण कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल की गई है। याचिकाकर्ता की मांग है कि सितंबर में संसद में पास किए गए महिला आरक्षधण कानून को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले लागू किया जाए। बीते महीने संसद से पास विधेयक को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी। इसके बाद विधेयक कानून बन गया है। इस कानून के तहत लोकसभा, राज्यों की विधान परिषदों और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित की जाएंगी। इसके अलावा इस कोटे के अंदर ही एससी और एसटी के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है। वहीं कहा जा रहा है कि अगली जनगणना और परिसीमने के बाद ही इस कानून को लागू किया जाएगा।
कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल की है और मांग की है कि आम चुनाव से पहले ही इस कानून को लागू कर दिया जाए। याचिका में उन्होंने कहा, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में समाज के हर हिस्से का अहम योगदान होता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से संसद और राज्य के सदनों में महिलाओं की पर्याप्त संख्या नहीं रही है। दशकों से इस बात की मांग होती रही है कि महिलाओं को 33 फीसदी का आरक्षण दिया जाए। वहीं जब कानून बन गया तो कहा जा रहा है कि इसी परिसीमन के बाद लागू किया जाएगा। हालांकि इसमें देरी नहीं की जानी चाहिए और तत्काल लागू किया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि इस तरह से संविधान संशोधन करके बनाए गए कानून को अनिश्चित काल के लिए नहीं रोका जा सकता है। इसी बिल के लिए विशेष सत्र भी बुलाया गया। दोनों सदनों में यह पास भी हो गया तो इसे रोकने का क्या मतलब है? बता दें कि संविधान में 128वां संशोधन करके महिलाओं के लिए सदन में 33 फीसदी सीटें आरक्षित की गई हैं। इसका मतलब है कि लोकसभा में मौजूदा 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओँ के लिए आरक्षित होंगी। जो सीटें अनुसूचित जातिऔर जनजाति के लिए आरक्षित हैं उनमें भी एक तिहाई सीटों को महिलाओँ के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा।
लोकसभा में 131 सीटें एससी और एसटी वर्ग के लिए रिजर्व हैं। अब इनमें से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। हालांकि परिसीमन के बाद अगर कानून लागू होगा तो सीटों की संख्या में बड़ा बदलाव आने वाला है। लोकसभा की सीटें बढ़ाई जाएंगी। इसी हिसाब से नए संसद भवन को भी तैयार किया गया है। पिछला परिसीमन 2002 में हुआ था और इसे 2008 में लागू किया गया।