कुबेरेश्वर धाम में 3 दिन में 6 मौतें: पूर्व मंत्री कुसुम महदेले ने जताई नाराजगी, पंडित प्रदीप मिश्रा के कार्यक्रम पर रोक की मांग; न्यायिक जांच की भी उठी मांग!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले स्थित कुबेरेश्वर धाम में श्रद्धा की चादर के नीचे लापरवाही की आंधी ने जनभावनाओं को झकझोर कर रख दिया है। कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा द्वारा आयोजित धार्मिक आयोजन में पिछले तीन दिनों के भीतर 6 श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है। इनमें से दो की जान भगदड़ में गई, जबकि अन्य की मौतें भीड़, थकान और अव्यवस्था के बीच अलग-अलग कारणों से बताई गई हैं। घटना के बाद अब सिर्फ सरकार नहीं, बल्कि धर्मगुरुओं की भूमिका और आयोजनों की जवाबदेही भी कटघरे में खड़ी है।

आयोजनों की आड़ में व्यवस्था का दम

मंगलवार को शुरू हुए रुद्राक्ष वितरण कार्यक्रम और बुधवार को निकाली गई 11 किमी लंबी कांवड़ यात्रा में दो से ढाई लाख श्रद्धालु उमड़े। दावा किया गया कि भक्त देशभर से पहुंचे — गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र तक से। लेकिन इतने विशाल जनसैलाब को संभालने के लिए ना पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था थी, ना ही आपातकालीन चिकित्सा प्रबंधन।

मंगलवार को रुद्राक्ष वितरण के दौरान भगदड़ मच गई, जिसमें दो महिलाओं की जान गई — जसवंती बेन (गुजरात) और संगीता गुप्ता (उत्तर प्रदेश)। इसके बाद बुधवार को तीन श्रद्धालुओं की मौत हुई, जिनमें से किसी को दिल का दौरा पड़ा, तो कोई भीड़ में थककर गिर पड़ा। गुरुवार सुबह एक और श्रद्धालु उपेंद्र गुप्ता (22 वर्ष, गोरखपुर) की जान चली गई। कुल छह मौतें सामने आईं, और कई घायल अस्पतालों में इलाजरत हैं।

अब सवालों के घेरे में पंडित प्रदीप मिश्रा

पूर्व मंत्री कुसुम महदेले ने सबसे पहले इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाते हुए पंडित प्रदीप मिश्रा से रुद्राक्ष वितरण बंद करने की मांग की। उन्होंने कहा कि आयोजनों के नाम पर जान का खतरा क्यों पैदा किया जा रहा है? महदेले की बात को भाजपा विधायक कंचन तन्वे और कांग्रेस विधायक राजेन्द्र सिंह ने भी समर्थन दिया। दोनों नेताओं ने कहा कि कथा का उद्देश्य आत्मिक जागरण होना चाहिए, न कि भीड़ और भगदड़ का जोखिम।

विवाद बढ़ने के बाद राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने बयान दिया कि इस मामले की न्यायिक जांच कराई जाएगी। उन्होंने माना कि मौतें चिंताजनक हैं और सरकार स्थिति का संज्ञान ले चुकी है। लेकिन बड़ी बात यह है कि ऐसे आयोजनों की पहले से समीक्षा और अनुमति प्रक्रिया क्यों नहीं होती, इस पर सरकार चुप है।

श्रद्धालुओं की जुबानी — “भीड़ है, लेकिन आनंद भी है”

मौके पर मौजूद कई श्रद्धालु हालांकि अब भी इस आयोजन को “अद्भुत और आध्यात्मिक” मानते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि “पैर रखने की भी जगह नहीं थी, लेकिन दर्शन कर आनंद आ गया।”

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