Lohri: श्री कृष्ण की जीत से लेकर दुल्ला भट्टी की वीरता तक, जानें इस पर्व की रोचक कहानियां!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

दोस्तों, जब भी लोहड़ी का नाम लिया जाता है, एक रंगीन और खुशियों से भरी रात की तस्वीर हमारी आंखों के सामने आती है। ये वो दिन है, जब हर कोई खुशी से झूमता है और आग के चारों ओर नाचता है। तो आज हम आपको बताएंगे कि इस बार लोहड़ी का पर्व कब मनाया जाएगा और इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है।

लोहड़ी का पर्व हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है।  इस बार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी यानी कि आज मनाया जाएगा। यह दिन खासकर पंजाब और हरियाणा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन अब पूरे देश में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि एक एहसास है, एक खुशी का पर्व, जो रबी फसल की कटाई का प्रतीक है। इस दिन लोग अग्नि देव की पूजा करते हैं, और इस पवित्र आग में तिल, रेवड़ी, गुड़ और गज़क जैसी चीजें अर्पित करते हैं। यह एक ऐसा समय है, जब हम अपनी फसल के अच्छे परिणामों के लिए भगवान का धन्यवाद करते हैं। लोहड़ी के बाद माना जाता है कि दिन धीरे-धीरे बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।

बता दें, इस पर्व के पीछे कई महत्वपूर्ण कथाएं हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, लोहड़ी की आग दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती की याद में जलाई जाती है। दरअसल, एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ आयोजित किया। इसमें राजा दक्ष ने देवी देवताओं को न्योता दिया, लेकिन अपनी पुत्री सती और उनके पति भगवान शिव को नहीं बुलाया। सती अपने पिता के द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ में जाने के लिए उत्सुक थीं। इसके चलते भगवान शिव ने उन्हें आयोजन में जाने की इजाजत दे दी, लेकिन उस आयोजन में जाकर उन्होंने देखा कि वहां उनके पति के यज्ञ का भाग नहीं है। इस पर उन्होंने आपत्ति की। इसके बाद राजा दक्ष ने भगवान भोलेनाथ का बहुत अपमान किया। अपने पति का अपमान माता सहन न कर सकीं। उन्होंने यज्ञ की उसी अग्नि में स्वयं को भस्म कर लिया। मान्यता है कि लोहड़ी माता सती को ही समर्पित की गई है।

दूसरी कथा है एक बहुत ही प्रसिद्ध लोककथा के बारे में। कहते हैं कि मुग़ल बादशाह अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक साहसी लुटेरा था। वह गरीबों की मदद करता था और हिंदू-सिख लड़कियों के विवाह में भी सहयोग करता था। एक बार उसने दो बहनों सुंदरी और मुंदरी को जमींदार से बचाकर उनकी शादी करवाई। यह घटना लोहड़ी के दिन ही हुई थी, और तभी से हर साल लोहड़ी के दिन लोग उस बहादुर लुटेरे को याद करते हुए लोकगीत गाते हैं।

अब आती है एक और कथा, जो श्रीकृष्ण भगवान से जुड़ी है। कहते हैं कि लोहड़ी के दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए एक राक्षसी को भेजा था, जिसका नाम था लोहिता। लेकिन श्री कृष्ण ने उस राक्षसी को खेल-खेल में ही मार डाला। और तब से यह भी मान्यता बन गई कि लोहड़ी का पर्व श्री कृष्ण की जीत की खुशी में मनाया जाता है।

पौष महीने के आखिरी दिन लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन के बाद प्रकृति में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। लोहड़ी के बाद माना जाता है कि दिन धीरे-धीरे बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। फसलों के लिए मौसम अनुकूल होने लगता है। लोहड़ी में ल से लकड़ी, ओह से जलते सूखे उपले और ड़ी से रेवड़ी होती है।

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