चीन मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से गरमाई सियासत: राहुल गांधी को ‘फटकार’ पर मोदी ने कसा तंज, कहा- “इससे बड़ी डांट हो ही नहीं सकती”; प्रियंका बोलीं – “जज तय नहीं करेंगे कि सच्चा भारतीय कौन है”

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

भारतीय राजनीति एक बार फिर गरमा गई है — इस बार केंद्र में हैं कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सुप्रीम कोर्ट की वह तीखी टिप्पणी, जिसने ‘सच्चे भारतीय’ की परिभाषा को सियासी बहस के केन्द्र में ला दिया है। 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा दिए गए चीन और भारतीय सेना पर बयान को लेकर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा, “एक सच्चा भारतीय ऐसा बयान नहीं देगा।” इसके बाद पूरे देश में बहस छिड़ गई — क्या राहुल गांधी की आलोचना देश के खिलाफ थी या सरकार से जवाबदेही की मांग?

प्रियंका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर पलटवार करते हुए संसद परिसर में कहा, “माननीय जजों का पूरा सम्मान रखते हुए मैं ये कहना चाहती हूं कि वे यह तय नहीं करेंगे कि सच्चा भारतीय कौन है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके भाई यानी राहुल गांधी ने कभी सेना के खिलाफ नहीं बोला है। “सरकार से सवाल पूछना विपक्ष का कर्तव्य है, और राहुल हमेशा सेना के प्रति सम्मान रखते हैं,” उन्होंने कहा।

यह विवाद उस बयान से जुड़ा है जो राहुल गांधी ने दिसंबर 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन कब्जा ली है और सरकार इस मुद्दे पर चुप है। उन्होंने यह भी कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सैनिकों को पीटा गया और 20 जवान शहीद हुए, फिर भी इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही।

राहुल गांधी की इस टिप्पणी के खिलाफ लखनऊ की एक अदालत में आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने यूपी सरकार और शिकायतकर्ता को तीन हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके बावजूद, कोर्ट की मौखिक टिप्पणियां राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर चुकी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में इस पूरे विवाद पर कहा, “सुप्रीम कोर्ट की इससे बड़ी फटकार हो ही नहीं सकती।” वहीं कांग्रेस पार्टी इसे लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश बता रही है।

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने तीखा बयान देते हुए कहा, “भारतीय भूमि पर चीनी कब्जा एक हकीकत है, जिसे कोई भी देशभक्त नहीं नकार सकता। अगर यही बयान अवमानना है, तो मुझे भी उसमें शामिल कर लीजिए।” वहीं ओडिशा कांग्रेस अध्यक्ष भक्त चरण दास ने सुप्रीम कोर्ट के जज दीपांकर दत्ता को भी कटघरे में खड़ा किया, यह कहते हुए कि उन्हें राहुल की भारतीयता पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राहुल गांधी का बचाव करते हुए कहा कि राहुल ने कोई नया राज नहीं खोला, बल्कि जो बातें कही हैं, वो मीडिया और इंटरनेट पर पहले से मौजूद हैं।

इस बीच बीजेपी की ओर से जवाबी हमला भी जारी है। पार्टी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “राहुल गांधी की विश्वसनीयता पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने भारत विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन किया है।”

बात सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है। मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ की कोशिश की थी। गलवान घाटी की झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे, जबकि भारत की जवाबी कार्रवाई में 40 से अधिक चीनी सैनिकों के मारे जाने की खबरें थीं। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी इन घटनाओं को आधार बनाकर लगातार सरकार से सवाल पूछते रहे हैं कि आखिर क्या चीन ने हमारी ज़मीन हड़प ली है?

इस पूरे घटनाक्रम में एक बड़ा सवाल यह भी है — विपक्ष द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा पर उठाए गए सवाल क्या राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आते हैं, या फिर यह एक लोकतंत्र की सामान्य प्रक्रिया है जहां सरकार की जवाबदेही तय की जाती है? क्या सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी लोकतांत्रिक बहसों को सीमित कर देगी?

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