जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
गुजरात के वडोदरा में महीसागर नदी पर हुए भीषण हादसे के 27 दिन बाद आखिरकार राहत और बचाव टीम को बड़ी सफलता मिली है। 9 जुलाई 2025 को वडोदरा के गंभीरा ब्रिज के टूटने से कई वाहन नदी में समा गए थे, जिनमें से एक केमिकल से भरा टैंकर पुल के जर्जर स्लैब पर बुरी तरह से फंस गया था। अब बुधवार को एक विशेष अभियान के तहत इस टैंकर को पुल से सुरक्षित निकाल लिया गया। यह अभियान लगभग 5 घंटे तक चला और इसे मरीन इमरजेंसी रिस्पांस टीम की निगरानी में पूरा किया गया।
क्या था हादसा: 22 लोगों की गई थी जान
9 जुलाई को अचानक ब्रिज का एक हिस्सा टूट जाने से कई वाहन नदी में गिर गए थे, जिसमें 22 लोगों की मौत हो गई थी। टैंकर पुल के टूटे हुए हिस्से पर इस तरह से अटक गया था कि उसका अगला हिस्सा ऊपर लटक रहा था जबकि पिछला हिस्सा नीचे फंसा हुआ था। यही वजह थी कि भारी मशीनरी से उसे हटाना संभव नहीं हो पा रहा था।
राहत कार्य में क्यों हो रही थी देरी?
पुल के कमजोर और जर्जर हो चुके ढांचे की वजह से क्रेनों और अन्य भारी मशीनों को पुल पर तैनात करना संभव नहीं था। किसी भी तरह की कंपन या वजन से पुल का बाकी हिस्सा भी गिर सकता था, जिससे जान-माल का और बड़ा नुकसान हो सकता था। इस तकनीकी चुनौती के चलते काम को अंजाम देने के लिए पोरबंदर की विश्वकर्मा कंपनी की मरीन इमरजेंसी रिस्पांस टीम को बुलाया गया।
कैसे निकाला गया टैंकर? अनोखी “मरीन बलून तकनीक” का हुआ इस्तेमाल
इस ऑपरेशन में जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया, वह आमतौर पर समुद्री जहाजों को उठाने और किनारे लाने में उपयोग की जाती है। इसे “मरीन एयर लिफ्ट बलून तकनीक” कहा जाता है।
सबसे पहले टैंकर के नीचे एक विशेष प्रकार का एयर लिफ्टिंग रोलर बैग रखा गया और उसे फुलाया गया। जैसे ही टैंकर का अगला हिस्सा कुछ ऊपर उठा, उसी के नीचे एक और बैग लगाया गया। फिर रस्सियों की मदद से टैंकर को किनारे खड़ी दो बड़ी क्रेनों से बांधा गया और धीरे-धीरे खींचते हुए पांच घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार टैंकर को ब्रिज से हटा लिया गया।
ऑपरेशन में 70 लोगों की टीम, ड्रोन से निगरानी
इस पूरे अभियान में करीब 70 विशेषज्ञों की टीम लगाई गई थी, जिसमें इंजीनियरिंग, मरीन, और रेस्क्यू से जुड़े तकनीकी विशेषज्ञ शामिल थे। मुख्य इंजीनियरों और टेक्निकल टीम ने लगातार तीन दिन तक लोकेशन का निरीक्षण किया, ताकी हर चरण की बारीक योजना बनाई जा सके। ऑपरेशन के दौरान ड्रोन से लगातार निगरानी और वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई, ताकि किसी भी जोखिम की स्थिति को तुरंत भांपा जा सके।
ब्रिज की हालत पहले से ही थी चिंताजनक
गंभीरा ब्रिज का निर्माण 1981-82 में उत्तर प्रदेश सेतु निगम द्वारा किया गया था। यह पुल दक्षिण गुजरात को सौराष्ट्र से जोड़ने वाला एक प्रमुख मार्ग था। हादसे के बाद अब इस पुल के बंद होने से भरूच, नवसारी, तापी, सूरत और वलसाड से सौराष्ट्र की ओर आने-जाने वाले यात्रियों को अब अहमदाबाद होकर लंबा रास्ता तय करना पड़ रहा है।
जो यात्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भर हैं, उन्हें नदी पार करने के लिए अब नावों का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे न केवल समय की बर्बादी हो रही है बल्कि जोखिम भी बढ़ गया है।
2015 में बदली गई थी पुल की बेयरिंग, तब भी थी शिकायतें
जानकारी के अनुसार, 2015 में भी इस पुल की हालत खराब बताई गई थी, जिसके बाद सरकारी निरीक्षण में इसकी बेयरिंग को बदला गया था। उस वक्त भी पुल की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठे थे। सूत्रों के अनुसार, निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया था, जिसका असर अब सामने आ रहा है।