2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में सभी आरोपी बरी, हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी महाराष्ट्र सरकार; हाल ही में ‘सबूतों में गंभीर खामियां’ बताकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनाया था फैसला!

You are currently viewing 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में सभी आरोपी बरी, हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी महाराष्ट्र सरकार; हाल ही में ‘सबूतों में गंभीर खामियां’ बताकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनाया था फैसला!

जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

भारत के इतिहास के सबसे घातक आतंकी हमलों में शामिल 2006 मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट केस में नया मोड़ आ गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा सभी 12 आरोपियों को बरी किए जाने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की तत्काल सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया, जिस पर 24 जुलाई को सुनवाई तय की गई है।

बता दें, 21 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष (प्रॉसीक्यूशन) आरोपियों के खिलाफ दोष सिद्ध करने में विफल रहा। अदालत ने माना कि जांच और साक्ष्यों में कई विसंगतियां थीं, जिनके आधार पर यह साबित नहीं किया जा सकता कि आरोपियों ने यह अपराध किया था। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक वे किसी अन्य प्रकरण में वांछित नहीं हैं, तब तक उन्हें तुरंत रिहा किया जाए

इसके बाद नागपुर सेंट्रल जेल से दो आरोपियों—एहतेशाम सिद्दीकी और मोहम्मद अली को सोमवार शाम रिहा कर दिया गया। एहतेशाम को 2015 में निचली अदालत ने मृत्युदंड सुनाया था, जबकि मोहम्मद अली को आजीवन कारावास मिला था। हालांकि एक अन्य आरोपी, नवीद खान, अभी जेल में रहेगा क्योंकि वह हत्या के प्रयास के एक अन्य मामले में विचाराधीन कैदी है।

क्या था मामला: 11 मिनट, 7 ब्लास्ट, 189 मौतें

11 जुलाई 2006 की शाम को मुंबई की पश्चिम रेलवे की 7 लोकल ट्रेनों के फर्स्ट क्लास कोचों में लगातार धमाके हुए। ये धमाके प्रेशर कुकर, RDX, फ्यूल ऑयल और कीलों से बने बमों से अंजाम दिए गए थे। घटनाएं खार, बांद्रा, माहिम, जोगेश्वरी, माटुंगा, मीरा-भायंदर और बोरीवली स्टेशन के पास हुईं। कुल 189 यात्रियों की मौत हुई और 800 से अधिक घायल हुए।

घटना के 9 साल बाद, 2015 में स्पेशल मकोका कोर्ट ने सुनाया था फैसला, जिसमें 5 को फांसी, 7 को उम्रकैद और 1 को बरी किया गया था।

हाईकोर्ट में दोष सिद्ध क्यों नहीं हो सका?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में 5 प्रमुख खामियों को रेखांकित किया:

  1. बम के प्रकार की पुष्टि नहीं हो सकी, जब्त वस्तुओं को विस्फोट से जोड़ने में असमर्थता।

  2. गवाहों की विश्वसनीयता संदिग्ध रही—कई गवाहों ने 100 दिनों बाद बयान दिए, जो विरोधाभासी थे।

  3. शिनाख्त परेड अवैध पाई गई, जांच अधिकारी को इसका विधिक अधिकार नहीं था।

  4. आरोपियों के इकबालिया बयान संदिग्ध, उनकी भाषा और संरचना में अत्यधिक समानता पाई गई।

  5. सबूतों की सीलिंग प्रक्रिया में खामियां, जिससे वे कानूनी रूप से भरोसेमंद नहीं माने जा सके।

वर्षों तक आतंकवाद से जुड़े मामलों की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता उज्ज्वल निकम ने इस फैसले पर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि, “यह हमला 1993 के मुंबई ब्लास्ट की तरह ही अंजाम दिया गया था। तकनीकी खामियां न्याय में बाधा बन गईं।” वहीं, बचाव पक्ष के वरिष्ठ वकील और पूर्व चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर ने कहा कि अभियुक्तों के बयान ‘कॉपी-पेस्ट’ जैसे थे और यह गंभीर प्रक्रिया दोष है। उन्होंने कोर्ट के समक्ष जांच प्रक्रिया की विसंगतियों को विस्तार से रखा।

अब आगे क्या?

महाराष्ट्र सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रही है। यदि शीर्ष अदालत बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय को पलटती है, तो इस मामले में नया मोड़ आ सकता है। लेकिन यदि यह निर्णय बरकरार रहता है, तो भारत की आतंकवाद संबंधी जांच प्रक्रिया की पारदर्शिता और क्षमता पर बड़े सवाल खड़े होंगे।

Leave a Reply