जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के तुगलक क्रिसेंट स्थित सरकारी आवास पर 14 मार्च को हुई रहस्यमयी आगजनी और उसके बाद स्टोर रूम से अधजले ₹500-₹500 के नोटों से भरी बोरियों की बरामदगी ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के निर्देश पर गठित तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति मंगलवार दोपहर न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर पहुंची। इस टीम ने 45 मिनट तक घटनास्थल की जांच की और स्टोर रूम का गहन निरीक्षण किया।
जांच टीम के सदस्य और कार्यवाही
CJI द्वारा गठित इस जांच समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी. एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं।
जांच दल ने घटनास्थल से अहम सुराग जुटाए और सुप्रीम कोर्ट को विस्तृत रिपोर्ट सौंपने की तैयारी कर रहा है। वहीं, इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 24 मार्च को जस्टिस वर्मा को उनके मूल हाईकोर्ट (इलाहाबाद) वापस ट्रांसफर करने की सिफारिश जारी की थी। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के इस फैसले से नाराज इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी है। बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने और इस मामले की ED और CBI से जांच कराने की मांग की है। इस प्रस्ताव की कॉपी सुप्रीम कोर्ट को भी भेजी गई है।
कैसे खुला ‘कैश कांड’ का मामला?
14 मार्च की रात 11:30 बजे जस्टिस वर्मा के बंगले में आग लग गई थी, जिसकी सूचना उनके निजी सचिव ने दमकल विभाग को दी। आग को काबू करने के बाद जब दमकल कर्मियों ने स्टोर रूम की जांच की, तो वहां जले हुए नोटों से भरी हुई बोरियां बरामद हुईं। इस घटना के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने तत्काल इस मामले की जांच के आदेश दिए और सुप्रीम कोर्ट को 21 मार्च को इंटरनल रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा को फिलहाल किसी भी ज्यूडिशियल काम से रोक दिया है और उनके कॉल रिकॉर्ड समेत अन्य पहलुओं की जांच के आदेश दिए हैं।
दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, 14 मार्च की रात 11:45 बजे पीसीआर को आग लगने की सूचना मिली। दमकल की दो गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और आग बुझाने के बाद जले हुए नोटों से भरी बोरियां बरामद की गईं। पुलिस ने रिपोर्ट में कहा कि यह स्टोर रूम गार्ड रूम से सटा हुआ था और वहां केवल स्टाफ के लोग ही आ-जा सकते थे।
22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले में आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को निर्देश दिया कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक जस्टिस वर्मा को कोई ज्यूडिशियल कार्य न सौंपा जाए। 22 मार्च (रात) को ही सुप्रीम कोर्ट ने 15 करोड़ कैश मिलने का 65 सेकंड का वीडियो जारी किया था । 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से सभी न्यायिक कार्यभार वापस ले लिया। फिर 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजने की सिफारिश की। वहीं, आज यानी की 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस टीम ने जस्टिस वर्मा के आवास पर जांच की है।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: कॉल डिटेल्स खंगाली जाएंगी
जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर जस्टिस वर्मा के पिछले छह महीने की कॉल डिटेल्स की गहन जांच होगी। अगर जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो CJI संजीव खन्ना निम्नलिखित कार्रवाई कर सकते हैं:
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जस्टिस वर्मा को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) या इस्तीफा देने की सलाह दी जाएगी।
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अगर वे इस्तीफा नहीं देते हैं, तो उन्हें किसी भी न्यायिक कार्य से वंचित कर दिया जाएगा।
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राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट भेजी जाएगी, जिससे महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जा सकेगी।
वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने 21 और 22 मार्च को सीजेआई को भेजी गई रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि 15 मार्च को होली की छुट्टी के कारण वह लखनऊ में थे। शाम 4:50 बजे दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने उन्हें फोन करके बताया कि 14 मार्च की रात 11:30 बजे जस्टिस वर्मा के बंगले में आग लग गई थी। यह सूचना जस्टिस वर्मा के निजी सचिव ने दी, जिसे आग लगने की जानकारी वहां काम करने वाले एक नौकर ने दी थी। आग जिस कमरे में लगी, वह गार्ड रूम के पास था और स्टोर रूम आमतौर पर बंद रहता था। उन्होंने अपने रजिस्ट्रार को मौके पर भेजा, जिन्होंने बताया कि जिस कमरे में आग लगी, वहां ताला नहीं था। 16 मार्च की शाम को दिल्ली लौटने पर उन्होंने सीजेआई से मुलाकात की और इस मामले की रिपोर्ट दी, इसके बाद जस्टिस वर्मा से संपर्क किया।
उन्होंने 17 मार्च को सुबह 8:30 बजे हाई कोर्ट गेस्ट हाउस में अपने विचार प्रस्तुत किए और षड्यंत्र की संभावना पर चिंता जताई। दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने आगे कहा की मेरी जांच के अनुसार, जिस कमरे में आग लगी, वहां किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश होना मुश्किल लगता है। केवल वहीं रहने वाले लोग, कर्मचारी और सीपीडब्ल्यूडी के कर्मी ही वहां जा सकते थे। इसलिए, मेरा मानना है कि इस मामले की विस्तृत जांच की जानी चाहिए।
वहीं, जांच रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा का बयान भी दर्ज किया गया है, जिसमें उन्होंने साफ तौर पर आरोपों से इनकार किया और कहा कि उन्हें साजिशन फंसाया जा रहा है। उन्होंने अपने जवाब में कहा:
- जिस स्टोर रूम से नकदी बरामद हुई, वह उनके घर के मुख्य हिस्से से अलग था और वहां कोई भी आ-जा सकता था।
- घटना के दिन वह और उनकी पत्नी भोपाल में थे, जबकि उनकी बेटी और वृद्ध मां घर पर थीं।
- आग बुझाने के दौरान घर के सभी स्टाफ और परिवार के सदस्यों को सुरक्षा कारणों से दूर रखा गया था, इसलिए उन्हें वहां किसी नकदी के होने की जानकारी नहीं थी।
- 15 मार्च की शाम जब वह दिल्ली लौटे, तब उन्हें पहली बार इस मामले की जानकारी मिली।
- जब सुप्रीम कोर्ट ने वीडियो और तस्वीरें दिखाईं, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ क्योंकि जो दृश्य वीडियो में दिखाया गया, वह उस जगह से मेल नहीं खा रहा था, जिसे उन्होंने खुद देखा था।
- उन्होंने यह भी कहा कि यह पूरा प्रकरण दिसंबर 2024 में सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ लगाए गए निराधार आरोपों से जुड़ा हो सकता है।
- उन्हें यह पूरा मामला एक “षड्यंत्र” प्रतीत होता है, जो दिसंबर 2024 में सोशल मीडिया पर लगे आरोपों से जुड़ा हो सकता है।
बता दें, 2018 में गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में हुई गड़बड़ी के मामले में जस्टिस वर्मा के खिलाफ CBI ने FIR दर्ज की थी। रिपोर्ट के अनुसार, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने मिल में गड़बड़ी की शिकायत की थी, जिसमें कहा गया था कि शुगर मिल ने किसानों के लिए दिए गए 97.85 करोड़ रुपए के लोन का गलत इस्तेमाल किया। उस समय जस्टिस वर्मा कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। CBI ने इस मामले की जांच शुरू की, लेकिन यह धीरे-धीरे ठंडी पड़ गई। फरवरी 2024 में एक अदालत ने CBI को बंद पड़ी जांच फिर से शुरू करने का आदेश दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया और CBI ने जांच को समाप्त कर दिया।
वहीं, इस मामले में CJI के तीन कड़े आदेश:
- जस्टिस वर्मा के घर की सुरक्षा से संबंधित सभी अधिकारियों और गार्ड्स की पूरी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी जाए।
- पिछले 6 महीने में जस्टिस वर्मा की आधिकारिक और व्यक्तिगत कॉल डिटेल की जांच की जाए।
- जस्टिस वर्मा को निर्देश दिया गया कि वे अपने मोबाइल फोन से कोई भी डेटा या मैसेज डिलीट न करें।