जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश और गुजरात के बीच सरदार सरोवर बांध को लेकर 8 हजार करोड़ रुपए के मुआवजे का मामला अब एक गहरे विवाद में बदल चुका है। मध्यप्रदेश सरकार जहां 7,669 करोड़ रुपए का संशोधित मुआवजा मांग रही है, वहीं गुजरात सरकार केवल 281 करोड़ रुपए पर विचार करने की बात कर रही है। इस वित्तीय तनातनी के बीच असली कीमत चुका रहे हैं वो हजारों विस्थापित परिवार, जो आज भी पुनर्वास की आस में बेघर और बेसहारा हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर का दावा है कि आज भी करीब 10,000 लोग पूरी तरह से पुनर्वास से वंचित हैं।
कैसे शुरू हुआ ये विवाद?
साल 2003 में जब सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 90 मीटर थी, एमपी सरकार ने वन और राजस्व भूमि के लिए कुल 281.46 करोड़ रुपए का मुआवजा गुजरात से मांगा था। लेकिन जैसे-जैसे बांध की ऊंचाई बढ़ती गई (2014 में 138.68 मीटर तक), वैसे-वैसे डूब क्षेत्र में आने वाली जमीन और विस्थापितों की संख्या में भी इजाफा हुआ। 2019 में बांध के पूरी क्षमता से भरने के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने 2019-20 के बाजार मूल्य पर आधारित नया मूल्यांकन किया और 7,669 करोड़ रुपए की संशोधित मुआवजे की मांग गुजरात से की।
गुजरात ने शुरू से ही इन दावों को खारिज कर दिया। 2003 की एक चिट्ठी में गुजरात सरकार ने साफ कहा कि वह मुआवजा नहीं देगी। इसके बाद दोनों राज्यों के बीच कई बैठकें हुईं, लेकिन कोई हल नहीं निकला। हाल ही में 17 अगस्त 2024 को गुजरात ने दावा किया कि एमपी ने मुआवजे से जुड़े दस्तावेज और जानकारी नहीं दी, जबकि एमपी ने सिलसिलेवार तरीके से सभी दावों को खारिज करते हुए गुजरात के बयान को “झूठा और भ्रामक” बताया।
एमपी का कहना है कि उसने 2003, 2015, और 2022 में सभी दस्तावेज और संशोधित दावे पेश किए, लेकिन गुजरात बार-बार इन्हें अनदेखा करता रहा। अब मध्यस्थता प्रक्रिया के अंतर्गत दोनों राज्यों के मध्यस्थों की बैठकें केवड़िया और गांधीनगर में चल रही हैं, जहां दोनों पक्षों ने अपने-अपने प्रजेंटेशन दे दिए हैं।
इस विवाद का सबसे भीषण असर उन ग्रामीणों और आदिवासियों पर पड़ा है, जिनकी जमीन और घर पानी में समा चुके हैं, लेकिन पुनर्वास आज भी अधूरा है। कई लोगों को न मुआवजा मिला, न वैकल्पिक ज़मीन और न ही सुविधाएं। सरकारी अफसर बार-बार फंड की कमी का हवाला देते हैं, वहीं एमपी सरकार गुजरात पर राशि रोकने का आरोप लगा रही है।
क्या है अगला कदम?
गुजरात के सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड के चीफ इंजीनियर शुभम गोयल ने स्वीकार किया कि करीब 8 हजार करोड़ की राशि पर विवाद है और जांच चल रही है कि एमपी का दावा कितना सही है। वहीं मध्यस्थ पी.के. लाहेरी ने बताया कि अब मुद्दे तय किए जाएंगे और सुनवाई का अगला चरण शुरू होगा। यदि कोई सहमति नहीं बनी तो मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा और वहां से एक जज की नियुक्ति होगी।