जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मकर संक्रांति का यह पावन पर्व धर्म, आस्था और परंपराओं का अनुपम संगम है। इस दिन की पवित्रता और आध्यात्मिकता का अनुभव नर्मदा, शिप्रा, गंगा, यमुना और सरयू जैसी पवित्र नदियों के घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ से किया जा सकता है। उज्जैन के पवित्र शिप्रा घाट पर भक्त स्नान कर “जय श्री महाकाल” की गूंज के बीच दान-पुण्य कर रहे हैं। स्नान के बाद महाकाल के दर्शन कर, भक्त उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। महाकाल की नगरी में आस्था और श्रद्धा का यह अद्भुत दृश्य हर हृदय को दिव्यता से भर देता है।
रामनगरी अयोध्या में भी मकर संक्रांति की धूम देखते ही बन रही है। भीषण ठंड को पीछे छोड़, श्रद्धालु ब्रह्म मुहूर्त से ही सरयू नदी के तट पर जुट गए। पवित्र सरयू में डुबकी लगाकर भक्तों ने सूर्यदेव का पूजन-अर्चन किया और तिल, खिचड़ी का दान कर पुण्य अर्जित किया। गऊ दान की परंपरा को निभाते हुए भक्त प्रमुख मठ-मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए उमड़ पड़े। यह दिव्य दृश्य केवल आस्था की गहराई को दर्शाता है।
मध्यप्रदेश के मंडला, खरगोन, खंडवा, जबलपुर और छिंदवाड़ा में भी मकर संक्रांति की छटा निराली है। छिंदवाड़ा के गर्म कुंड में श्रद्धालुओं ने स्नान कर कुंडेश्वर भोलेनाथ का विशेष अभिषेक किया।
बालाघाट में वैनगंगा नदी के किनारे श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाकर सूर्य देव को जल अर्पित किया, वहीं महामृत्युंजय घाट, शंकर घाट और बजरंग घाट पर भक्तों की एक बड़ी संख्या उमड़ी हुई थी। इन पवित्र स्थानों पर श्रद्धा और भक्ति का अद्वितीय संगम देखा जा सकता है।
टीकमगढ़ के प्रसिद्ध शिव धाम कुंडेश्वर में भी भक्तों ने जमडार नदी में स्नान कर भगवान भोलेनाथ को जल अर्पित किया और पूजा की। श्रद्धालुओं की भीड़ यहां के हर घाट पर नजर आ रही थी, जहां लोग अपने पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति की प्राप्ति के लिए समर्पित हो रहे थे।
जबलपुर में नर्मदा नदी के ग्वारीघाट पर मकर संक्रांति के दिन ठंड के बावजूद श्रद्धालुओं ने नर्मदा स्नान किया और दिव्यता की खोज में नर्मदा मां से आशीर्वाद लिया। नर्मदापुरम के घाटों पर भी भक्तों का उत्साह देखते ही बनता था।
मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर परिवर्तन का प्रतीक है। यह दिन आत्मशुद्धि और जीवन के नए आरंभ का संदेश देता है। तांबे के कलश में काले तिल भरकर सोने का दाना रखकर दान करना, पितरों के लिए तर्पण, और गाय को घास खिलाने जैसी परंपराएं इस दिन को और भी पवित्र बना देती हैं।