मध्यप्रदेश विधानसभा में आज गरमाए कई मुद्दे: श्रद्धांजलि से शुरू हुई कार्यवाही, आदिवासियों की जमीन और ग्वालियर किले की गरिमा पर उठे सवाल

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र का सातवां दिन कई मायनों में खास और संवेदनशील रहा। कार्यवाही की शुरुआत एक सम्मानजनक क्षण के साथ हुई, जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। सेंट्रल हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार समेत तमाम मंत्रियों और विधायकों ने पुष्प अर्पित कर मिश्र को याद किया। यह पल न केवल राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक भी रहा, जिसने विधानसभा की कार्यवाही की शुरुआत को एक गंभीर और गरिमामय आधार दिया।

सदन में आज गूंजे अहम मुद्दे, पेश हुए कई विधेयक

आज विधानसभा में कई अहम विधेयक और याचिकाएं पेश की गईं, जिनका आम जनजीवन और प्रशासनिक ढांचे पर सीधा असर पड़ने वाला है। इन विधेयकों में शामिल रहे:

  • मध्यप्रदेश जन विकास अधिनियम में संशोधन विधेयक

  • मोटरयान कराधान संशोधन विधेयक

  • महानगर क्षेत्र नियोजन एवं विकास विधेयक

  • दुकान एवं स्थापना अधिनियम में संशोधन

  • मध्यप्रदेश विधिक सहायता निरसन विधेयक

  • पंजीकरण अधिनियम व स्टांप अधिनियम में संशोधन

इन विधेयकों के जरिए सरकार प्रदेश में योजनाओं के क्रियान्वयन, कराधान नीति और शहरी विकास जैसे पहलुओं को नए सिरे से पुनर्परिभाषित करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।

ग्वालियर किले में होटल खोलने का मुद्दा बना गरम बहस का विषय

विधानसभा में बीजेपी विधायक अभिलाष पांडे, रमेश खटीक और कांग्रेस विधायक पंकज उपाध्याय ने ग्वालियर किले में प्रस्तावित होटल निर्माण के खिलाफ आवाज बुलंद की। विधायकों का कहना था कि यह सिर्फ पर्यटन विकास का मामला नहीं, बल्कि ऐतिहासिक धरोहर की आत्मा से छेड़छाड़ है। उनका सवाल था कि क्या व्यावसायीकरण के नाम पर संस्कृति और विरासत को कुर्बान किया जाएगा? इस विषय ने न सिर्फ विपक्ष, बल्कि सत्ता पक्ष के कुछ सदस्यों में भी चिंता का कारण पैदा किया।

कांग्रेस विधायक ने जबलपुर में फर्जी नियुक्तियों का मुद्दा उठाया

कांग्रेस विधायक लखन घनघोरिया ने जबलपुर में फर्जी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर की गई सरकारी नियुक्तियों का मामला ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए सदन में रखा। उन्होंने मांग की कि इस घोटाले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए। यह मामला सरकार की पारदर्शिता और प्रशासनिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

आदिवासियों की जमीन पर बड़ा राजनीतिक संघर्ष

सोमवार को विपक्ष ने एक बार फिर आदिवासी अधिकारों को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा में आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने करीब 3.5 लाख वन अधिकार पट्टे निरस्त कर दिए हैं, जो सीधे-सीधे आदिवासी समाज के अधिकारों का हनन है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जवाब में कहा कि उनके कार्यकाल में ही सबसे ज्यादा—26,500 वन अधिकार पट्टे— बांटे गए हैं और सरकार इस मुद्दे पर संवेदनशील है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि बारिश के मौसम में किसी भी आदिवासी को उसकी जमीन से बेदखल नहीं किया जाएगा।

वहीं जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह ने स्पष्ट किया कि सैटेलाइट इमेजिंग के आधार पर दिसंबर 2005 की स्थिति का मूल्यांकन कर आगे की कार्यवाही की जाएगी। इससे यह तय किया जा सकेगा कि किसका पट्टा वैध है और किसका नहीं। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया भी कई बार आदिवासियों के खिलाफ ही जाती है।

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