6 साल बाद मातोश्री में मुलाकात: उद्धव-राज ठाकरे के बीच रविवार को हुई बैठक, 27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे ने दिया था शिवसेना से इस्तीफा!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार को एक महत्वपूर्ण दृश्य सामने आया, जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे छह साल बाद शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे के घर ‘मातोश्री’ पहुंचे। यह सिर्फ एक औपचारिक शिष्टाचार भेंट नहीं थी, बल्कि दो चचेरे भाइयों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सियासी मतभेदों में संभावित सुलह का प्रतीक भी माना जा रहा है।

राज ठाकरे ने उद्धव को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, उन्हें गुलदस्ता भेंट किया और गले लगाया। हालांकि, यह मुलाकात पहली नजर में व्यक्तिगत और पारिवारिक लग सकती है, लेकिन इसके सियासी मायने बहुत गहरे हैं, खासकर उस पृष्ठभूमि में जब 5 जुलाई को मुंबई के वर्ली डोम में आयोजित ‘मराठी एकता’ रैली में दोनों एक मंच पर आए थे

एक मंच पर साथ, लेकिन क्या साथ आएंगे?

5 जुलाई को जब उद्धव और राज वर्ली डोम में मंच साझा कर रहे थे, तो यह केवल मराठी अस्मिता का प्रदर्शन नहीं था। यह उस राजनीतिक संकेत की तरह देखा गया जिसमें दोनों नेताओं ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई भूमिका की भूमिका तलाशने का संकेत दिया।

राज ठाकरे ने रैली में कहा था, “झगड़े से बड़ा महाराष्ट्र है… हमारे लिए सिर्फ महाराष्ट्र और मराठी एजेंडा है, कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं।” वहीं उद्धव ठाकरे ने भी मंच साझा करने को भाषण से अधिक महत्वपूर्ण बताया और कहा, “हमारे बीच की दूरियां जो मराठी ने दूर कीं, वह सबको अच्छी लग रही हैं।”

इन बयानों ने राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज कर दी है कि क्या आने वाले विधानसभा चुनावों में MNS और शिवसेना (UBT) साथ आ सकते हैं?

कैसे पड़ी थी फूट?

उद्धव और राज ठाकरे का सियासी सफर कभी एक था। 1989 में राज ठाकरे ने शिवसेना की स्टूडेंट विंग ‘भारतीय विद्यार्थी सेना’ का नेतृत्व संभाला और पूरे महाराष्ट्र में युवाओं को जोड़ते हुए संगठन को मजबूत किया। उनका करिश्माई नेतृत्व 90 के दशक में शिवसेना के ग्रासरूट विस्तार में अहम साबित हुआ।

लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, बालासाहेब ठाकरे ने पार्टी की बागडोर धीरे-धीरे उद्धव ठाकरे को सौंपनी शुरू की। 2003 के महाबलेश्वर अधिवेशन में जब उद्धव को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, तब से राज और उद्धव के बीच दूरी बढ़ने लगी।

राज ने इस पर असंतोष जताया था कि “मेरा और मेरे लोगों का क्या होगा?” यह सवाल केवल व्यक्तिगत महत्व का नहीं था, बल्कि पार्टी की नीति और नेतृत्व को लेकर एक गंभीर वैचारिक मतभेद की शुरुआत थी।

अलग रास्ता, अलग पार्टी

आखिरकार 27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे ने शिवसेना से इस्तीफा दे दिया। अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि उनका झगड़ा शिवसेना से नहीं, बल्कि ‘पुजारियों’ से है, जो उन्हें पार्टी में आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। इसके कुछ ही महीनों बाद, 9 मार्च 2006 को उन्होंने ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ (MNS) की स्थापना की, जिसे उन्होंने ‘मराठी मानुस की पार्टी’ बताया।

हालांकि शुरुआत में MNS ने कुछ क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन किया, लेकिन धीरे-धीरे वह सीमित प्रभाव वाली पार्टी बनकर रह गई। दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने महाराष्ट्र की राजनीति में स्थायित्व बनाए रखा—हालांकि बाद में पार्टी भी दो हिस्सों में टूट गई।

अब क्या होगा आगे?

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की यह ताज़ा नजदीकी सिर्फ पारिवारिक मेल-मिलाप भर नहीं है। इसे मराठी राजनीति में एक नया समीकरण तैयार करने की भूमिका के रूप में देखा जा रहा है। दोनों नेताओं की पिछली सियासी कटुता और भविष्य की संभावनाएं—इन दोनों के बीच एक पुल बनते नजर आ रहे हैं।

हालांकि अभी तक दोनों की ओर से औपचारिक गठबंधन की कोई घोषणा नहीं की गई है, लेकिन इस तरह की मुलाकातें और सार्वजनिक मंच साझा करना यह साफ दर्शा रहा है कि आने वाले चुनावों में मराठी वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिशें तेज हो सकती हैं।

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