मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण विवाद: सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई, 8 लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों का भविष्य दांव पर

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% आरक्षण देने के मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होने जा रही है। यह मामला पिछले कई वर्षों से न्यायालय में लंबित है और इसके कारण 2019 से अब तक राज्य की 35 से अधिक भर्ती प्रक्रियाओं में 13% पद होल्ड पर रखे गए हैं। इसका सीधा असर करीब 8 लाख अभ्यर्थियों पर पड़ा है, जिनमें से लगभग 3.2 लाख चयनित उम्मीदवार नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

2019 में शुरू हुआ विवाद

राज्य सरकार ने 2019 में ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का कानून पारित किया था। इसके बाद लागू आदेशों पर 4 मई 2022 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी, यह कहते हुए कि आरक्षण की कुल सीमा 73% तक पहुंच रही है, जो 50% की संवैधानिक सीमा से अधिक है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संशोधित कानून और नियमों पर भी रोक लगा दी थी।

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही

यह मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो गया, जहां अब तक 70 से अधिक याचिकाएं जुड़ चुकी हैं। 5 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चांडुरकर की बेंच ने इस मुद्दे पर 12 अगस्त को प्राथमिकता के साथ सुनवाई करने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में होल्ड किए गए 13% पदों को अनहोल्ड किया जाए, ठीक वैसे ही जैसे छत्तीसगढ़ में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत दी है।

सरकार और याचिकाकर्ताओं के तर्क

राज्य सरकार का तर्क है कि मध्यप्रदेश में ओबीसी की आबादी करीब 48% है, इसलिए उन्हें 27% आरक्षण मिलना चाहिए। सरकार यह भी कह चुकी है कि वह सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग के समर्थन में है।
दूसरी ओर, अनारक्षित वर्ग ने दलील दी है कि 50% से अधिक आरक्षण देना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होगा। उन्होंने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ का मामला अलग है, क्योंकि वहां की जनसंख्या संरचना भिन्न है।

याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां दिसंबर 2022 में ओबीसी को 27% आरक्षण देने वाला बिल पारित हुआ, जिसके तहत एसटी को 32%, एससी को 13% और ईडब्ल्यूएस को 4% आरक्षण मिला। कुल आरक्षण 76% तक पहुंचने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने वहां अंतरिम राहत दी, जिससे आरक्षण अंतिम निर्णय तक जारी रहेगा।

भर्ती प्रक्रिया पर असर

विवाद के कारण प्रदेश में 2019 से हर भर्ती में केवल 14% ओबीसी आरक्षण के आधार पर परिणाम जारी किए जा रहे हैं और शेष 13% पद होल्ड पर हैं। यह स्थिति पीएससी से लेकर विभिन्न विभागीय भर्तियों तक प्रभावित कर रही है। विधानसभा चुनावों के बाद से अब तक 29 हजार पदों पर नियुक्तियां हो चुकी हैं, लेकिन 1.04 लाख पद अभी भी खाली पड़े हैं।

आगे की राह

अगर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाता है, तो मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण 27% लागू हो सकेगा और होल्ड पर रखे गए पदों पर नियुक्ति का रास्ता साफ होगा। अन्यथा, मौजूदा स्थिति में लाखों अभ्यर्थियों का इंतजार और लंबा हो सकता है।

आज की सुनवाई से यह स्पष्ट होगा कि क्या मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ की तरह अंतरिम राहत पा सकेगा, या फिर मामला संवैधानिक सीमा और आंकड़ों की कमी के चलते आगे खिंचेगा।

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