जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
3 अगस्त को अंगदान दिवस के मौके पर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में चिकित्सा और मानवता के संगम की एक प्रभावशाली तस्वीर सामने आई। एम्स भोपाल और गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) जैसे प्रमुख संस्थानों ने न केवल अपनी उपलब्धियों की रिपोर्ट साझा की, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए नई योजनाओं की रूपरेखा भी पेश की। यह दिन महज़ प्रतीक नहीं, बल्कि देश के हेल्थकेयर सिस्टम में संवेदनशीलता और विज्ञान की प्रगति का जीवंत उदाहरण बन गया।
एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने अपने कार्यकाल के अंतिम पड़ाव में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों से संस्थान को ट्रांसप्लांट हब में बदलने का संकल्प दिलाया। इसी के तहत वर्ष 2025 के अंत तक लिवर ट्रांसप्लांट शुरू करने और 2026 तक लंग ट्रांसप्लांट की व्यवस्था खड़ी करने का लक्ष्य रखा गया है। इस दिशा में हाल ही में लिवर ट्रांसप्लांट के लिए विशेषज्ञ डॉ. प्रवेश माथुर की नियुक्ति की गई है, जिनके नेतृत्व में एम्स को ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की अग्रिम पंक्ति में लाने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
गांधी मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग की एचओडी डॉ. कविता कुमार ने एक चौंकाने वाली लेकिन प्रेरणादायक जानकारी साझा की। रिपोर्ट में बताया गया कि 2025 के शुरुआती 7 महीनों में 32 नेत्रदान दर्ज किए गए हैं। इन मामलों में सबसे उल्लेखनीय रहा एक कॉल अमेरिका से, जब दीपांकर मुखर्जी ने अपने पिता रंजन प्रसाद मुखर्जी की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए विदेश से ही नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी कराई। यह न केवल एक बेटे का अपने पिता के प्रति सम्मान था, बल्कि तकनीक और चिकित्सा तंत्र की साझा सफलता का परिचायक भी बना।
विशेषज्ञों के अनुसार, हर साल हजारों लोगों को कॉर्निया की आवश्यकता होती है, लेकिन जो नेत्रदान होते हैं, उनमें से केवल 50% ही उपयोग योग्य होते हैं। भारत में लगभग 60 लाख लोग एक आंख से और 10 लाख लोग दोनों आंखों से कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से जूझ रहे हैं। हमीदिया अस्पताल की “हॉस्पिटल कॉर्नियल रिट्रीवल प्रोग्राम” जैसी पहलें रिश्तेदारों को जागरूक कर रही हैं ताकि समय रहते अंगदान संभव हो सके।
एम्स भोपाल ने कैडेवर डोनेशन के क्षेत्र में हाल ही में सफलता पाई है, लेकिन ये सफर आसान नहीं रहा। 31 बार की असफल कोशिशों के बाद मिली पहली स्वीकृति ने दिखाया कि समाज में अभी भी ब्रेन डेड डोनेशन के प्रति झिझक बनी हुई है। वहीं जीएमसी में कैडेवर डोनेशन की शुरुआत की मांग लगातार जोर पकड़ रही है। सरकारी अस्पतालों में सिर की चोट के मामले अधिक आते हैं, जिससे ब्रेन डेड केस बढ़ते हैं और ऐसे में अंगदान की संभावना अधिक बनती है।
नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में देशभर में कुल 1,099 कैडेवर डोनेशन हुए, जिसमें अकेले तेलंगाना का आंकड़ा 200 रहा, जबकि मध्यप्रदेश महज़ 8 डोनेशन तक सीमित रहा। ये आंकड़े बताते हैं कि मध्य भारत में लोगों में अंगदान को लेकर अभी भी जागरूकता और सामाजिक सहमति की भारी कमी है।
हार्ट ट्रांसप्लांट के मामले में भी स्थिति उत्साहजनक नहीं है। 2023 में कुल 233 ट्रांसप्लांट हुए, जिनमें 70 तमिलनाडु में दर्ज हुए, जबकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक भी नहीं हुआ। हालाँकि 2024 और 2025 में एम्स भोपाल में दो ट्रांसप्लांट हुए, जिनमें से एक मरीज जीवित है जबकि दूसरे की मृत्यु हो गई।