जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
विजयराघवगढ़ से भाजपा विधायक संजय पाठक की तीन खनन कंपनियों — आनंद माइनिंग कॉर्पोरेशन, निर्मला मिनरल्स और पैसिफिक एक्सपोर्ट — पर 443 करोड़ रुपये की वसूली को लेकर सियासत तेज हो गई है। यह मामला विधानसभा में उस समय गरमा गया जब कांग्रेस विधायक अभिजीत शाह ने इन फर्मों से जुड़ा सवाल उठाया और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जबलपुर की सिहोरा स्थित खदानों में स्वीकृत मात्रा से अधिक खनन और रॉयल्टी चोरी के आरोपों पर जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए जवाब दिया।
जवाब में बताया गया कि मप्र खनिज साधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार इन तीन कंपनियों पर कुल 443 करोड़ 4 लाख 86 हजार 890 रुपये की रॉयल्टी की रिकवरी बनती है, जो कथित तौर पर ओवर-प्रोडक्शन और सेल के बीच के अंतर से जुड़ी है। इसके अतिरिक्त जीएसटी की वसूली भी अलग से तय की जाएगी। शिकायतकर्ता आशुतोष मनु दीक्षित की शिकायत पर गठित जांच दल ने जून में रिपोर्ट सौंपी थी।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने नया मोड़ तब लिया जब खुद विधायक संजय पाठक ने मीडिया के सामने आकर इस पूरे मामले को “भ्रामक और एकतरफा” बताया। उन्होंने साफ कहा कि यह पूरा प्रतिवेदन अनुमानों और अधूरी गणनाओं पर आधारित है। पाठक का कहना है कि खदान 1936 से चल रही है और आज उस पर सैटेलाइट इमेज या सीमित डेटा के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना तकनीकी रूप से गलत और प्रशासनिक रूप से भ्रामक है।
उन्होंने दावा किया कि उनके परिवार का खनन व्यवसाय 1910 से जारी है और बीते 115 वर्षों में कभी कोई टैक्स चोरी, रॉयल्टी चोरी या अवैध खनन का मामला सामने नहीं आया है। “हमारी फर्म ‘सी.एल. पाठक एंड संस’ का नाम वर्ल्ड मिनरल बुक में दर्ज है। क्या इतने वर्षों के ट्रैक रिकॉर्ड को दो महीने की रिपोर्ट नकार सकती है?” पाठक ने सवाल उठाया।
पाठक का यह भी आरोप है कि जो आकलन पेश किया गया है वह सेल के आंकड़ों के आधार पर प्रोडक्शन का अनुमान लगाकर किया गया है, जो खनन जैसे जटिल और तकनीकी क्षेत्र में गंभीर प्रशासनिक चूक मानी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि “चार सौ एकड़ से ज्यादा में फैली खदान को दो महीने में मापा नहीं जा सकता। सैटेलाइट सर्वे भी बीते चार-पांच सालों में ही शुरू हुए हैं, जबकि यह खदान 90 साल पुरानी है।”
उन्होंने बताया कि मामले की निष्पक्षता को देखते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत रूप से निवेदन किया है और माइनिंग विभाग के प्रमुख सचिव को भी पत्र लिखा है कि किसी भी कार्रवाई से पहले कंपनियों का पक्ष पूरी तरह से सुना जाए। उन्हें भरोसा है कि “जब वास्तविक रिकॉर्ड और ऐतिहासिक दस्तावेज सामने आएंगे, तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”
हालांकि, इस बयानबाजी और रिपोर्ट के बीच सियासी गलियारों में हलचल बनी हुई है। कांग्रेस इस रिपोर्ट को लेकर हमलावर है और सरकार की कार्रवाई की निगरानी कर रही है, जबकि भाजपा के भीतर भी यह मुद्दा संवेदनशील होता जा रहा है।