जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भोपाल के सबसे व्यस्त और प्रीमियम माने जाने वाले इलाके एमपी नगर में बीते दिनों जो हुआ, उसने एक बार फिर सरकारी लापरवाही और व्यवस्थागत चूक को उजागर कर दिया। सड़क धंसने की इस घटना ने न सिर्फ ट्रैफिक को अस्त-व्यस्त किया, बल्कि आने-जाने वाले हजारों लोगों की ज़िंदगी भी खतरे में डाल दी। इस चौंकाने वाली घटना की जड़ में छुपा है करीब 50 साल पुराना एक अंडरग्राउंड नाला, जिसे न तो समय पर देखा गया, न ही उसकी नियमित सफाई की गई, और न ही उसकी संरचना पर कभी कोई ध्यान दिया गया।
पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर संजय मस्के की रिपोर्ट के अनुसार, एमपी नगर की शुरुआती बसाहट के दौरान ही यहां पत्थरों की दीवार वाला एक नाला बनाया गया था। लेकिन गंभीर चूक ये रही कि उस नाले के ऊपर कोई पुलिया नहीं बनाई गई—बल्कि उसे ज़मीन के अंदर ही दबा दिया गया। वक्त बीतता गया, नाले की हालत खराब होती रही और नगर निगम ने तो हद ही कर दी—उसी नाले के ऊपर सार्वजनिक टॉयलेट बना डाला। यानी जहां से पानी बहना था, वहां इंसानों का मल-मूत्र बहने लगा। पानी का प्रेशर, टॉयलेट का बोझ और लगातार हुई उपेक्षा—इन सबका परिणाम था सड़क का धंस जाना।
सड़क की मरम्मत फिलहाल जारी है। अंदर लोहे के बड़े एंगल से सेंटरिंग की जा रही है ताकि भविष्य में कोई ढहाव ना हो। ऊपर से सीमेंट कंक्रीट का स्लैब डाला जाएगा और इस बार अंदर की सेंटरिंग नहीं निकाली जाएगी, ताकि नाला अंदर से मजबूत बना रहे। लेकिन सवाल ये है कि जब ये नाला 2002 में सीपीए से पीडब्ल्यूडी को सौंपा गया, तो बीते 22 वर्षों में आखिर किसी ने इसकी संरचना, सफाई या मजबूती पर ध्यान क्यों नहीं दिया?
रिपोर्ट में और भी चौंकाने वाली जानकारी है—नाले के दोनों सिरों को नगर निगम ने पूरी तरह से कवर कर दिया, जिससे उसकी न तो सफाई हो पाई और न ही निरीक्षण। ऊपर से, बारिश के मौसम में जब भोपाल के कई नालों की सफाई होती है, तब भी यह नाला हमेशा अनदेखा रह जाता है। यही कारण है कि अपस्ट्रीम हिस्से से आने वाला भारी जलप्रवाह इस नाले को भीतर से कमजोर करता गया, और आखिरकार उसकी दीवार टूटी, जिसकी वजह से सड़क का एक बड़ा हिस्सा धरती में समा गया।
यह नाला सिर्फ एक क्षेत्र का नहीं, बल्कि एमपी नगर के ज़ोन-1 से ज़ोन-2 तक के पानी की निकासी करता है। उसके साथ एक और छोटी नाली भी जुड़ी है, जो इसी मुख्य नाले में गिरती है। इस दोहरी मार की वजह से नाले की दीवार पर प्रेशर बढ़ता गया और अंततः ये हादसा हुआ। अब जब गड्ढा बन गया, तब सभी विभाग जागे—लेकिन क्या इस बार सिर्फ गड्ढा भरना ही समाधान है?