शिबू सोरेन नहीं रहे: आदिवासी राजनीति के ‘दिशोम गुरु’ का 81 साल की उम्र में हुआ निधन, दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में ली अंतिम सांस; PM मोदी, राष्ट्रपति ने दी श्रद्धांजलि!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

झारखंड की राजनीति में जनआंदोलनों और आदिवासी हितों के सबसे सशक्त प्रतीकों में शामिल दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन हो गया है। 81 वर्षीय राज्यसभा सांसद और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक संरक्षक ने आज सुबह दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले डेढ़ महीने से जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे थे। ब्रेन स्ट्रोक के बाद उनकी हालत लगातार गंभीर बनी हुई थी और उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था। अंततः आज देश ने एक ऐसे जननायक को खो दिया, जिसने राजनीति को संघर्ष से सींचा और सत्ता को जनहित के लिए साधन बनाया।

कभी कोयला मंत्री, कभी मुख्यमंत्री—लेकिन हमेशा जननेता

शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर न सिर्फ लंबा, बल्कि अत्यंत उतार-चढ़ाव भरा रहा। यूपीए-1 के दौर में वह केंद्र सरकार में कोयला मंत्री रहे, लेकिन चिरूडीह हत्याकांड में नाम आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। राज्य की राजनीति में तीन बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला, परंतु पूरे कार्यकाल को मिलाकर वे सिर्फ 10 महीने 10 दिन ही इस पद पर रह सके। पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत साबित न कर पाने के चलते 10 दिन में इस्तीफा देना पड़ा। दूसरी बार 2008 में CM बने लेकिन विधायक न होने के कारण छह महीने में चुनाव जीतना जरूरी था—जो वे नहीं जीत सके। तीसरी बार 2009 में मुख्यमंत्री बने और पांच महीने बाद इस्तीफा देना पड़ा।

राजनीति से पहले संघर्ष—13 साल की उम्र में पिता की हत्या, पढ़ाई छोड़ दी

शिबू सोरेन का जीवन एक गहरी त्रासदी और जनसंघर्ष की मिसाल रहा है। 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू के जीवन की सबसे बड़ी चोट तब लगी जब वे सिर्फ 13 साल के थे और महाजनों ने उनके पिता की हत्या कर दी। यह घटना उनकी पूरी दिशा बदल गई। उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लिया। यहीं से उन्होंने आदिवासी समाज को जागरूक करना शुरू किया और आगे चलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव डाली।

राजकीय सम्मान, दिल्ली से रांची तक अंतिम यात्रा

शिबू सोरेन के निधन के बाद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं सर गंगाराम अस्पताल पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, मीसा भारती, मनोज झा सहित कई विपक्षी नेताओं ने भी उन्हें नमन किया। झारखंड सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर आज शाम दिल्ली से रांची लाया जाएगा। राहुल गांधी और खड़गे उनके अंतिम संस्कार में शामिल होंगे।

राजनीति नहीं, आंदोलन का नाम था शिबू सोरेन

शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं थे, वे एक आंदोलन का नाम थे। झारखंड राज्य के गठन से लेकर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई तक, उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। उनकी राजनीति ने सत्ता को साध्य नहीं, बल्कि माध्यम माना। चाहे कोयला घोटाले का दाग हो या चुनावी हार, उन्होंने हार नहीं मानी और हमेशा जनता के बीच लौटे। उनकी छवि कभी किसी जाति या पार्टी के दायरे में सीमित नहीं रही—वे जनजातीय आकांक्षाओं के सबसे बड़े प्रतीक थे।

 

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